पहल
वो दिल के मामले में ज़रूर कच्चे हैं,
इसलिए वो हमसे दूर ही अच्छे हैं|
सर में ग़ुरूर नामक कीड़ा समाये हुए है सालों-साल,
और आखिर में डगमगा ही जाते हैं दोनों के ताल|
यहाँ तो पहले ही कुछ और हाल होता है,
फिर बवाल होता है,
और फिर सवाल होता है!
सच बताना.....
क्या वाकई वह कोई रिश्ता भी था
या था बस एक नाता?
लगाव का.....
मतलब का.....
एक ऐसा नाता, जिसका एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं|
वह.....
वह तो मात्र एक कश्ती थी,
जिस पर हम-तुम सवार थे|
पर अब मानो, जैसे वह कश्ती रवाना हो चुकी हो.....
हम-तुम मानो जुदा हो चुके हों|
पहले इस अस्थिर कश्ती का डामाडोल संभाल,
फिर आगे बढ़|
अपने अंदर बसी गलतफ़हमियों को निकाल,
फिर उनसे लड़|
शर्त छोड़, बैर तोड़,
बैठ, ज़रा देख, पहल कर|
सुलह कर, बात जोड़,
बाज़ी बदल, रुख मोड़|
तो ज़रा पूछ, ज़रा बता,
ज़रा जता, क्या थी हम दोनों की ख़ता?
वक्त बिता.....
बता तुझे क्या पसंद और क्या है नापसंद?
किससे आती है तेरे चेहरे पर यह प्यारी सी मुस्कान और क्या तुझे डराती है?
क्या तू वो अंधकारमयी अतीत मेरे साथ बाँट सकती है?
वह गहरा जख्म, धुंधली रात
जिस सांवले अंधकार में ना होती थी हमारी बात|
बता न आखिर.....
तेरी क्या है ऐसी ख्वाहिशें
और मिटा ये सारी रंजिशें
बता.....
क्या तू दो दिलों का शरीक होना रोक सकती है?
ज़िन्दगी में आए उस हर गम को बदलकर
ख़ुशी का हिस्सा बना सकती है?
अगर तू ये सारी बातें मुझसे बाँट सकती है
तो मैं और तू हम हैं
वरना तू नहीं, मैं नहीं,
तो क्या गम हैं...??!!
------कुनामी सोरेन
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