तब बनती है कुछ बात!
जब बातों में, मेरी या तुम्हारी नहीं,
हमारी बात आने लगती है......
तब बनती है कुछ बात!
बाकी तो अभी तक आप,
एक दूसरे को तलाश ही रहे हो
इसमें वक्त लगता है.....
हम आने के लिए वक्त लगता है
पर होता है......
अगर कोशिश की जाएं,
उस गति में खोया जाए
तब बनती है कुछ बात!
जो बात दर्द में है
सुकून में थोड़ी कम है
सब ऐसा ही मानते हैं
महफ़िल भी इसी से जमाते हैं
जब महफ़िल बनने लगे
तब बनती है कुछ बात!
बात बयां करोगे
औरों से मुस्कान ही मिलेगी
पर आह से वाह तक का सफर
टूटे हुए शायर से ही मिलेगी
शायद शायर ही बन जाओ
तब बनती है कुछ बात!
कितनी सन्नाटे भरी ये घटनाएं हैं
सबकुछ बिगाड़ सी देती हैं
क्यों??????
क्यूंकि उसमें न कोई बात होती है!
और तब न कोई बात बनती है!!!
------कुनामी सोरेन
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